आजाद-कथा - खंड 2 - 95

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जिस दिन आजाद कुस्तुनतुनिया पहुँचे, उनकी बड़ी इज्जत हुई। बादशाह ने उनकी दावत की और उन्हें पाशा का खिताब दिया। शाम का आजाद होटल में पहुँचे और घोड़े से उतरे ही थे कि यह आवाज कान में आई, भला गीदी, जाता कहाँ है। आजाद ने कहा - अरे भई, जाने दो। आजाद की आवाज सुन कर खोजी बेकरार हो गए। कमरे से बाहर आए और उनके कदमों पर टोपी रख कर कहा - आजाद, खुदा गवाह है, इस वक्त तुम्हें देख कर कलेजा ठंडा हो गया, मुँह-माँगी मुराद पाई।