आजाद-कथा - खंड 2 - 92

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आज तो कलम की बाँछें खिली जाती हैं। नौजवानों के मिजाज की तरह अठखेलियाँ पर है। सुरैया बेगम खूब निखर के बैठी हैं। लौंडियाँ-महरियाँ बनाव-चुनाव किए घेरे खड़ी हैं। घर में जश्न हो रहा है। न जाने सुरैया बेगम इतनी दौलत कहाँ से लाईं। यह ठाट तो पहले भी नहीं था। महरी - ऐ बी सैदानी, आज तो मिजाज ही नहीं मिलते। इस गुलाबी जोड़े पर इतना इतरा गईं? सैदानी - हाँ, कभी बाबराज काहे को पहना था? आज पहले-पहल मिला है। तुम अपने जोड़े का हाल तो कहो।