आजाद-कथा - खंड 2 - 70

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शाम के वक्त हलकी-फुलकी और साफ-सुथरी छोलदारी में मिस क्लारिसा बनाव-चुनाव करके एक नाजुक आराम-कुर्सी पर बैठी थी। चाँदनी निखरी हुई थी, पेड़ और पत्ते दूध में नहाये हुए और हवा आहिस्ता-आहिस्ता चल रही थी! उधर मियाँ आजाद कैद में पड़े हुए हुस्नआरा को याद करके सिर धुनते थे कि एक आदमी ने आ कर कहा - चलिए, आपको मिस साहब बुलाती हैं। आजाद छोलदारी के करीब पहुँचे तो सोचने लगे, देखें यह किस तरह पेश आती है। मगर कहीं साइबेरिया भेज दिया तो बेमौत ही मर जाएँगे। अंदर जा कर सलाम किया और हाथ बाँध कर खड़े हो गए। क्लारिसा ने तीखी चितवन कर कहा - कहिए मिजाज ठंडा हुआ या नहीं?