आजाद-कथा - खंड 2 - 69

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दूसरे दिन आजाद का उस रूसी नाजनीन से मुकाबिला था। आजाद को रातभर नींद नहीं आई। सवेरे उठ कर बाहर आए तो देखा कि दोनों तरफ की फौजें आमने-सामने खड़ी हैं और दोनों तरफ से तोपें चल रही हैं। खोजी दूर से एक ऊँचे दरख्त की शाख पर बैठे लड़ाई का रंग देख रहे थे और चिल्ला रहे थे, होशियार, होशियार! यारों, कुछ खबर भी है? हाय! इस वक्त अगर तोड़ेदार बंदूक होती तो परे के परे साफ कर देता। इतने में आजाद पाशा ने देखा कि रूसी फौज के सामने एक हसीना कमर में तलवार लटकाए, हाथ में नेजा लिए, घोड़े पर शान से बैठी सिपाहियों को आगे बढ़ने के लिए ललकार रही है। आजाद की उस पर निगाह पड़ी तो दिल में सोचे, खुदा इसे बुरी नजर से बचाए। यह तो इस काबिल है कि इसकी पूजा करे। यह, और मैदान जंग! हाय-हाय, ऐसा न हो कि उस पर किसी का हाथ पड़ जाय। गजब की चीज है यह हुस्न, इंसान लाख चाहता है, मगर दिल खिंच ही जाता है, तबीयत आ ही जाती है।