आजाद-कथा - खंड 1 - 54

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रात का वक्त था, एक सवार हथियार साजे, रातों-रात घोड़े को कड़कड़ाता हुआ बगटुट भागा जाता था। दिल में चोर था कि कहीं पकड़ न जाऊँ! जेलखाना झेलूँ। सोच रहा था, शाहजादे के घर में आग लगाई है, खैरियत नहीं। पुलिस की दौड़ आती ही होगी। रात भर भागता ही गया। आखिर सुबह को एक छोटा सा गाँव नजर आया। बदन थक कर चूर हो गया था। अभी घोड़े से उतरा ही था कि बस्ती की तरफ से गुल की आवाज आई। वहाँ पहुँचा, तो क्या देखता है कि गाँव भर के बाशिंदे जमा हैं, और दो गँवार आपस में लड़ रहे हैं। अभी यह वहाँ पहुँचा ही था कि एक ने दूसरे के सिर पर ऐसा लट्ठ मारा कि वह जमीन पर आ रहा। लोगों ने लट्ठ मारनेवाले को गिरफ्तार कर लिया और थाने पर लाए। शहसवार ने दरियाफ्त किया, तो मालूम हुआ कि दोनों की एक जोगिन से आशनाई थी।