आजाद-कथा - खंड 1 - 53

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रात के ग्यारह बजे थे, चारों बहनें चाँदनी का लुत्फ उठा रही थीं। एका-एक मामा ने कहा - ऐ हुजूर, जरी चुप तो रहिए। यह गुल कैसा हो रहा है? आग लगी है कहीं। हुस्नआरा - अरे, वह शोले निकल रहे हैं। यह तो बिलकुल करीब है। नवाब साहब - कहाँ हो सब की सब! जरूरी सामान बाँध कर अलग करो। पड़ोस में शाहजादे के यहाँ आ लग गई। जेवर और जवाहिरात अलग कर लो। असबाब और कपड़े को जहन्नुम में डालो। बहारबेगम - हाय, अब क्या होगा! हुस्नआरा - हाय-हाय, शोले आसमान की खबर लाने लगे!