आजाद-कथा - खंड 1 - 44

  • 4.6k
  • 1.2k

हुस्नआरा और सिपहआरा, दोनों रात को सो रही थीं कि दरबान ने आवाज दी - मामा जी, दरवाजा खोलो। मामा - दिलबहार देखो कौन पुकारता है? दिलबहार - ऐ वाह, फिर खोल क्यों नहीं देतीं? मामा - मेरी उठती है जूती दिन भर की थकी-माँदी हूँ। दिलबहार - और यहाँ कौन चंदन-चौकी पर बैठा है? दरबान - अजी, लड़ लेना पीछे, पहले किवाँड़े खोल जाओ। मामा - इतनी रात गए क्यों आफत मचा रखी हैं? दरबान - अजी, खोलो तो, सवारियाँ आई हैं। हुस्नआरा - कहाँ से? अरे दिलबहार! मामा! क्या सब की सब मर गईं? अब हम जायँ दरवाजा खोलने? हुस्नआरा की आवाज सुन कर सब की सब एक दम उठ खड़ी हुई। मामा ने परदा करा कर सवारियाँ उतरवाईं।