आजाद-कथा - खंड 1 - 41

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हुस्नआरा मीठी नींद सो रही थी। ख्वाब में क्या देखती है कि एक बूढ़े मियाँ सब्ज कपड़े पहने उसके करीब आ कर खड़े हुए और एक किताब दे कर फरमाया कि इसे लो और इसमें फाल देखो। हुस्नआरा ने किताब ली और फाल देखा, तो यह शेर था - हमें क्या खौफ है, तूफान आवे या बला टूटे। आँख खुल गई तो न बूढ़े मियाँ थे, न किताब। हुस्नआरा फाल-वाल की कायल न थी मगर फिर भी दिल को कुछ तसकीन हुई। सुबह को वह अपनी बहन सिपहआरा से इस ख्वाब का जिक्र कर रही थी कि लौंडी ने आजाद का खत ला कर उसे दिया।