आजाद-कथा - खंड 1 - 32

  • 4.7k
  • 1.5k

सुबह को गाड़ी एक बड़े स्टेशन पर रुकी। नए मुसाफिर आ-आ कर बैठने लगे। मियाँ खोजी अपने कमरे के दरवाजे पर खड़े घुड़कियाँ जमा रहे थे - आगे जाओ, यहाँ जगह नहीं है क्या मेरे सिर पर बैठोगे? इतने में एक नौजवान दूल्हा बराती कपड़े पहने आ कर गाड़ी में बैठ गया। बरात के और आदमी असबाब लदवाने में मसरूफ थे। दुलहिन और उसकी लौंडी जनाने कमरे में बैठाई गई थीं। गाड़ी चलनेवाली ही थी कि एक बदमाश ने गाड़ी में घुस कर दूल्हे की गरदन पर तलवार का ऐसा हाथ लगाया कि सिर कट कर धड़ से अलग हो गया। उस बेगुनाह की लाश फड़कने लगी। स्टेशन पर कुहराम मच गया। सैकड़ों आदमी दौड़ पड़े और कातिल को गिरफ्तार कर लिया। यहाँ तो यह आफत थी, उधर दुलहिन और महरी में और ही बातें हो रही थीं।