आजाद-कथा - खंड 1 - 28

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दूसरे दिन नौ बजे रात को नवाब साहब और उनके मुसाहब थिएटर देखने चले। नवाब - भई, आबादीजान को भी साथ ले चलेंगे। मुसाहब - जरूर, जरूर उनके बगैर मजा किरकिरा हो जायगा। इतने में फिटन आ पहुँची और आबादीजान छम-छम करती हुई आ कर मसनद पर बैठ गईं। नवाब - वल्लाह, अभी आप ही का जिक्र था। आबादी - तुमसे लाख दफे कह दिया कि हमसे झूठ न बोला करो। हमें कोई देहाती समझा है! नवाब - खुदा की कसम, चलो, तुमको तमाशा दिखा लाएँ। मगर मरदाने कपड़े पहन कर चलिए, वर्ना हमारी बेइज्जती होगी। आबादी ने तिनग कर कहा - जो हमारे चलने में बेआबरूई है, तो सलाम।