आजाद-कथा - खंड 1 - 25

  • 5.5k
  • 2.1k

मियाँ आजाद हुस्नआरा के यहाँ से चले, तो घूमते-घामते हँसोड़ के मकान पर पहुँचे और पुकारा। लौंड़ी बोली कि वह तो कहाँ गए हैं, आप बैठिए। आजाद - भाभी साहब से हमारी बंदगी कह दो ओर कहो, मिजाज पूछते हैं। लौंडी - बेगम साहबा सलाम करती हैं और फर्माती हैं कि कहाँ रहे? आजाद - इधर-उधर मारा-मारा फिरता था। लौंडी - वह कहती हैं, हमसे बहुत न उड़िए। यहाँ कच्ची गोलियाँ नहीं खेलीं। कहिए, आपकी हुस्नआरा तो अच्छी है। यह बजरे पर हवा खाना और यहाँ आ कर बुत्ते बताना। आजाद - आपसे यह कौन कच्चा चिट्ठा कह गया? लौंडी - कहती हैं कि मुझसे भी परदा है? इतना तो बता दीजिए कि बरात किस दिन चढ़ेगी? हमने सुना है, हुस्नआरा आप पर बेतरह रीझ गईं। और, क्यों न रीझें, आप भी तो माशाअल्लाह गबरू जवान हैं।