आजाद-कथा - खंड 1 - 23

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मियाँ आजाद शिकरम पर से उतरे, तो शहर को देख कर बाग-बाग हो गए। लखनऊ में घूमे तो बहुत थे, पर इस हिस्से की तरफ आने का कभी इत्तिफाक न हुआ था। सड़कें साफ, कूड़े-करकट से काम नहीं, गंदगी का नाम नहीं, वहाँ एक रंगीन कोठी नजर आई, तो आँखों ने वह तरावट पाई कि वाह जी, वाह! उसकी बनावट और सजावट ऐसी भायी कि सुभान-अल्लाह। बस, दिल में खुब ही तो गई। रविशें दुनिया से निराली, पौदों पर वह जोबन कि आदमी बरसों घूरा करे।