आजाद-कथा - खंड 1 - 14

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मियाँ आजाद ठोकरें खाते, डंडा हिलाते, मारे-मारे फिरते थे कि यकायक सड़क पर एक खूबसूरत जवान से मुलाकात हुई। उसने इन्हें नजर भर कर देखा, पर यह पहचान न सके। आगे बढ़ने ही को थे कि जवान ने कहा - हम भी तसलीम की खू डालेंगे बेनियाजी तेरी आदत ही सही। आजाद ने पीछे फिर कर देखा, जवान ने फिर कहा - गो नहीं पूछते हरगिज वो मिजाज हम तो कहते हैं, दुआ करते हैं।