आजाद-कथा - खंड 1 - 13

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इधर शिवाले का घंटा बजा ठनाठन, उधर दो नाकों से सुबह की तोप दगी दनादन। मियाँ आजाद अपने एक दोस्त के साथ सैर करते हुए बस्ती के बाहर जा पहुँचे। क्या देखते हैं, एक बेल-बूटों से सजा हुआ बँगला है। अहाता साफ, कहीं गंदगी का नाम नहीं। फूलों-फलों से लदे हुए दरख्त खड़े झूम रहे हें। दरवाजों पर चिकें पड़ी हुई हैं। बरामदे में एक साहब कुर्सी पर बैठे हुए हैं, और उनके करीब दूसरी कुर्सी पर उनकी मेम साहबा बिराज रही हैं। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है। न कहीं शोर, न कहीं गुल। आजाद ने कहा - जिंदगी का मजा तो ये लोग उठाते हैं।