वर्तमान समय की भोगवादी-बाजारवादी संस्कृति में, गांव हो अथवा शहर, प्रत्येक व्यक्ति अर्थ के पीछे भागमभाग है । इस भागमभाग में स्वार्थ प्रबल है तथा संबंध दुर्बल होते जा रहे हैं । परंतु आज जो यह पुष्पित-पल्लवित वृक्ष के रूप में दिखाई पड़ रहा है, इसका बीज कई पीढ़ियों पहले पड़ गया था । प्रस्तुत कहानी इसी मर्म को आधार बनाकर सृजित की गई है कि जिन बच्चों के समक्ष माता-पिता बच्चों के लिए अथवा अपने किसी स्वार्थ के लिए अपने कर्तव्य से विमुख होते हैं, उन बच्चों के अबोध बाल मन रूपी कोरी स्लेट पर वह सब अंकित हो जाता है और उनका उसी प्रकार का चरित्र बन जाता है । उनकी बढ़ती आयु के साथ-साथ वह रंग गहरा और चमकदार होता जाता है । बोए पेड़ बबूल के कहानी में इसी तथ्य को दर्शाया गया है कि जिन माता-पिता के बच्चे माता-पिता को कर्तव्य पथ पर चलते देखते हैं, कष्टकारक जीवन जीते हुए भी उनमें मानवता का हास नहीं होता है, जबकि....।