स्वामिनी

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तब आकर कांपते हुए हाथों से ताला खोला उसकी छाती धड़क रही थी की कोई द्वार न खटखटाने लगे अंदर पाँव रखा ऑ उसे कुछ उसी प्रकार का लेकिन उससे कहीं तीव्र आनंद हुआ, जो उसे अपने गहने कपड़े की पिटारी खोलने के समय होता था मटकों में गुड शक्कर, गेहूं, जौ, आदि चीजें राखी हुई थी एक किनारे बड़े बड़े बरतन धरे थे जो शादी-ब्याह के अवसर पर ही निकाले जाते थे या मांगने पर दिये जाते थे एक आले पर मालगुजारी की रसीदें और लेन देन के पुरजे बंधे हुए रखे थे कोठरी में एक विभूति सी छायी थी, मानो लक्ष्मी अग्नात रूप से विराज रही हो...