समर यात्रा

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उस आंगन में वह बुढिया अपना अतीत के नृत्य कौशल्य को दिखाने लगी इस अलौकिक आनंद के रेले में वह अपना सारा दुःख और संताप बिलकुल ही भूल गयी उसके जीर्ण अंगों में जहाँ सदा वायु का प्रकोप रहता था, वहीँ न जाने कहाँ से इतनी चपलता, इतनी लचक और इतनी फुर्ती कहाँ से आ गयी थी? कुछ देर तो लोग मजाक से उसकी ओर ताकते रहे जैसे की बालक बंदर का नाच देखते हैं, पर फिर अनुराग के इस पावन प्रवाह ने सभी को मतवाला कर दिया उन्हें ऐसा जान पड़ा की सारी प्रति एक विराट और व्यापक नृत्य की गोद में खेल रही है तभी कोदई आया और बोला...