स्नेह पर कर्तव्य की विजय

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कमला और वृजरानी में दिनोदिन प्रीति बढ़ने लगी एक प्रेम का दास था और दूसरी कर्तव्य की दासी संभव न था की वृजरानी के मुख से कोई बात निकले और कमलाचरण उसको पूरा न करे अब उसकी तत्परता और योग्यता उन्हीं प्रयत्नों में व्यय होती थी पढ़ना केवल माता पिता को धोखा देने जैसा ही था वह सदा रुख देख करता और इस आशा पर की यह काम उसकी प्रसन्नत का कारण होगा और शायद इसीलिए वो सब कुछ करने को कटिबद्ध रहता एक दिन उसने माधवी को फुलवाड़ी से फूल चुनते हुए देखा यह छोटा सा उद्यान उसके घर के पीछे था परन्तु...