सुशीला की मृत्यु

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अँधेरा हो चला था और सारे गृह में शोकमय और भयावह सन्नाटा छा गया था रोने वाले रो तो रहे थे पर कंठ बाँध बाँध कर लोग आपस में बातें भी कर रहे थे पर दबी आवाज़ में सुशीला भूमि पर पड़ी हुई थी वह सुकुमार अंग जो कभी माता के अंग में पला, कभी प्रेमांक में प्रौढ़ा, तो कभी फूलों की सेज पर सोया इस समय भूमि पर पड़ा हुआ था अभी तक नाड़ी मंद मंद गति से चल रही थी मुंशीजी शोक और निराशा मग्न हो कर उसके सर की और बैठे हुए थे अकस्मात ही उसने अपना सर उठाया और मुंशीजी के...