शराब की दुकान

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दुसरे दिन, तीसरे पहर जयराम पांच स्वयंसेवकों के साथ वेगमगंज के शराबखाने की पिकेटिंग करने पहुँच गया ताड़ी और शराब, दोनों की दुकानें मिली हुई थी ठेकेदार भी एक ही था दूकान के सामने सडक की पटरी पर, अंदर के आंगन में नशेबाजों की टोलियाँ विष में अमृत का आनंद लूट रही थी कोई वहाँ अफलातून से कम नहीं था कहीं वीरता की डिंग थी, कहीं अपने दान दक्षिणा के पचड़े, कहीं अपने बुद्धि कौशल का आलाप अहंकार नशे का मुख्य रूप होता है वहां एक बूढा शराबी बोल रहा था की भैया जिंदगानी का भरोसा नहीं, बिलकुल भरोसा नहीं अगर मेरी बात मान लो तो...