सैलानी बन्दर

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एक दिन मन्नू के जी में आया की चलकर कहीं फल खाना चाहिए फल खाने को मिलते तो थे पर वृक्षों पर चढकर डालियों पर उचकने, कुछ खाने और कुछ गिराने में कुछ और ही मज़ा था बन्दर विनोदशील होते ही हैं, और मन्नू में इसकी मात्र कुछ अधिक थी भी कभी पकड़- और मारपीट की नौबत न आई थी पेड़ो पर चढकर फल खाना उसके स्वाभाविक जान पड़ता था यह न जानता था की वहां प्रकृति वस्तुओं पर भी किसी की छाप लगी हुई है जल, वायु, प्रकाश पर भी लोगों ने अधिकार जमा रक्खा है, फिर बाग़-बगीचों का तो कहना ही क्या? और फिर दोपहर को जीवनदास जब तमाशा दिखा कर लौटा तो...