यह एक कहानी है विकास के दौर में दशकों से विकास के अधूरे पड़े सपनों की. जहाँ बड़े-बड़े वादे किये जा रहे हैं, डिजिटल इण्डिया की बात हो रही है एक गाँव के लोग 20 साल से एक छोटे से पुल के बनने का इन्तजार कर रहे हैं. उसके सपने में जी रहे हैं. प्रभात रंजन की इस कहानी को अनेक पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं. कई विश्वविद्यालयों में इसको कोर्स में पढ़ाया जाता है. विकास के नाम पर आम जनता के साथ किस तरह से छल किया जाता है इसको लेकर एक सुन्दर कहानी.