पूस की रात

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जबरा जोर से भूंककर खेत की ओर भागा हल्कू को ऐसा मालूम हुआ कि जानवरों का एक झुण्ड खेत में आया है शायद नीलगायों का झुण्ड था उनके कूदने दौड़ने की आवाजें साफ़ कान में आ रही थी फिर ऐसा मालूम हुआ कि खेत में चर रही है उनके चबाने की आवाज चर चर सुनाई देने लगी उसने दिल में कहा नहीं, जबरा के होते कोई जानवर खेत में नहीं आ सकता नोच ही डाले मुझे भ्रम हो रहा है कहाँ? अब तो कुछ सुनाई भी नहीं देता मुझे भी कैसा धोखा हुआ! उसने ज़ोर से आवाज़ लगायी – जबरा, जबरा