प्रायश्चित

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सुबोध को वैसे तो यहाँ आये हुए एक महिना बीत गया था और वो बोर्ड के सारे कर्मचारियों से अच्छी तरह घुलमिल गया था बोर्ड के सारे क्लर्क, चपरासी, अर्दली उसके बर्ताव से खुश है सुबोध सदा प्रसन्नचित्त रहता था, कठोर शब्द तो मानों उसकी ज़ुबा से कोसो दूर रहते थे वो इनकार भी इस तरह से करता था की लोगों को उस इनकार से ज़रा भी बुरा न लगे परन्तु द्वेष भरी आँखोंने सारे सद्गुण भयंकर हो जाते हैं, और सुबोध के सारे सद्गुण भी मदारीलाल की आँखों में अब खटकने लगे थे और वो सुबोध के खिलाफ़ कोई न कोई षड्यंत्र रचते ही रहता था