प्रतापचन्द्र और कमलाचरण

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प्रतापचन्द्रने बहुत कोशिश की पर कमलाचरण उसके सामने खुल कर नहीं बोल पा रहा था वो निरंतर गभराया हुआ सा लगता और छात्रालय में गुमसुम सा घूमता रहता था उसे हरदम ऐसा लगता था की उस पर आपत्तियां लादी जाती है और उसका जीवन बस अब ऐसे ही गुज़रने वाला है