ममता

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बाबू साहब दिन में इतने रंग बदलते थे की पेरिस की परियों को भी इर्षा हो सकती थी कई बैंको में उनके हिस्से थे कई दुकानें भी थी पर यह सब चलाने की लिये उनके पास अवकाश नहीं था