नीरजा का विदाई समारोह

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वर्तमान उपभोक्तावादी-बाजारवादी संस्कृति में आज व्यक्ति इस कदर डूब रहे हैं कि अपने प्रतिद्वंदियों से आगे बढ़ने की होड़ में अपने आत्मीय संबंधों को बुलाते जा रहे हैं । फलने-फूलने की चाहत के अतिरेक में अपनी जड़ों से दूर होते जा रहे हैं । जिसका परिणाम अंततः उनके लिए कष्टकारक सिद्ध होता है । प्रस्तुत कहानी की नायिका नीरजा के जीवन तथा मार्मिक प्राणान्त से इस सत्य तथ्य की प्रामाणिक और कलात्मक ढंग से पुष्टि होती है ।