लौट चल

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उन्नति की चाह में भागमभाग व्यक्ति कभी पीछे मुड़कर नहीं देखता और उसी भागमभाग में वह अपने आत्मीय जनों को छोड़कर कब -कहां कितना आगे निकल जाता है पता ही नहीं चलता । बहुत आगे पहुंचने पर जब भीड़ में स्वयं को अकेला पाता है, तब अपने आत्मीय जनों की याद आती है । इसी तथ्य को केंद्र में रखकर प्रस्तुत कहानी की सर्जना की गई है ।