दाँत

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सुमंगली ने जीवन पर्यंत दिया ही, मगर लिया कुछ नहीं। अपनी वृद्धावस्था में यदि वह अपने लिए कुछ सहेजना चाहे भी, तो परिवार अपनी ज़रूरतों के आगे उसकी उस इच्छा का भी मान रखने को तैयार नहीं।