जानकी

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यह सदियों से होता आया है कि निर्मूल लाँछनों का दंश स्त्रियों को ही झेलना पड़ता है। किसी और पुरूष की उद्दंडता के कारण पग-पग पर सतर्कता से चलने वाली स्त्री को भी कब और कैसे समाज से घोर अपमान सहना पड़े, कोई नहीं जानता। चाहें वे माता सीता ही क्यूँ न हों।