इशक़-ओ-मोहब्बत के बारे में अख़लाक़ का नज़रिया वही था जो अक्सर आशिकों और मोहब्बत करने वालों का होता है। वो रांझे पीर का चेला था। इशक़ में मर जाना उसके नज़दीक एक अज़ीमुश्शान मौत मरना था।