त्याग

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हमारे समाज में माँ के तयाग की चर्चा बहुत होती है और होनी भी चाहिए त्याग में माँ का स्थान कोई नहीं ले सकता लेकिन पिता भी अपनी संतान के लिए जो त्याग करता है वो किसी भी मायने में कम नहीं होता हाँ , उसके त्याग की चर्चा कम होती है या नहीं होती है इस कहानी का मुख्य पात्र एक ऐसा ही पिता है जो अपने नालायक बेटे के लिए ऐसा त्याग का उदाहरण पेश करता है जो उदाहरण बन जाता है बाप चाहे गरीब हो या अमीर, मजदुर हो या मालिक , कृषक हो या जमींदार अपने संतानों को ऊँचें से ऊँचे स्थान दिलाने के लिए हमेशा प्रयास रहता है और इसके लिए वह अपना सर्वस्य त्याग करने को तैयार भी