परीक्षा प्रेत

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विद्यालयों में अंक प्रतिशत और प्रथम स्थान प्राप्त करने की होड़ में अभिभावक बच्चों का बचपना छीनते जा रहे हैं । इसी विडंबना को आधार बनाकर, इस कहानी में, ध्रुव नामक बच्चे की पीड़ा को व्यक्त किया गया है ।