कहानी प्रतियोगिता हेतु कहानी

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सिवाय एक मनहूस बदसूरती के उस रात में कुछ नहीं था, मैं उसे दोपहर से शाम तक टुकड़ों में बांट चुका था। एक बोरे में फटा पुराना प्लास्टिक कवर जमाकर मैंने उन टुकड़ों को बोरे में डाल दिया। रस्सी से बोरे का मुंह अच्छी तरह बांधकर मैंने तसल्ली से खाना खाया, फिर चाय पी। फर्श को रगड़-रगड़ कर धोने के बावजूद खून के दाग रह गये थे। कार में अगली सीट के नीचे बोरे को ठूंस दिया। रवि को कॉल कर चुका था, वो समय का पाबंद था और मुझे पता था, मेरे पहुंचने तक वो समंदर किनारे आ चुका होगा...