अपराधी

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उस दिन मैंने महशूस किया कि वाकई मैं अपराधी हूँ । क्योंकि मैंने जो गलती की उसका सुधार मुझे ही करना चाहिए था , लेकिन मैंने सुधार नही किया । अगर मुझे यह ज्ञात न होता कि मैंने गलती की तो शायद मेरा अपराध क्षम्य होता । शायद कोई न कोई मुझे उस गलती को सुधारने को कहता , अगर किसी ने देखा होता या शायद किसी अपराधी ने ही मुझे देखा हो । फिर वह क्यों कुछ कहता , वह तो अपने अपराध को ही छूपा रहा होगा या दादागिरी से खुलेआम अपराध कर रहा होगा । जब मैंने जान लिया था कि मुझसे अपराध हो गया गलती हो गई तो मेरा मन बहुत अशांत हो उठा , मैंने सोंचा क्या मैं इतना स्वार्थी हो सकता हूँ । फिर मैंने चारो तरफ नजर घुमाई और देखा कि अपराधी सिर्फ मैं ही नही हूँ