कक्षा 9वीं का लड़का आरव अपने मोहल्ले और परिवार के लिए एक सीधा-सादा बच्चा था। माँ उसे हमेशा कहतीं, "बेटा, पढ़ाई में थोड़ा मन लगाया करो।" पापा अक्सर उसकी चुप्पी पर हँसते और कहते, "ये लड़का बड़ा होकर लेखक बनेगा शायद, इतना लिखता ही रहता है।" असल में, आरव लिखता भी था… लेकिन सिर्फ एक नाम के लिए — अनाया।
अनकही मोहब्बत - 1
कक्षा 9वीं का लड़का आरव अपने मोहल्ले और परिवार के लिए एक सीधा-सादा बच्चा था। माँ उसे हमेशा कहतीं, पढ़ाई में थोड़ा मन लगाया करो। पापा अक्सर उसकी चुप्पी पर हँसते और कहते, ये लड़का बड़ा होकर लेखक बनेगा शायद, इतना लिखता ही रहता है। असल में, आरव लिखता भी था… लेकिन सिर्फ एक नाम के लिए — अनाया।---स्कूल की ज़िंदगीआरव स्कूल में सबसे पीछे वाली बेंच पर बैठता था। उसकी एक छोटी-सी टोली थी — मयंक और सौरभ जैसे दोस्त, जो पढ़ाई में उससे अलग थे लेकिन उसकी हँसी के साथी थे।टिफिन टाइम में वे सब मिलकर कैंटीन से ...और पढ़े
अनकही मोहब्बत - 2
खामोश तस्वीरकक्षा 11 का समय था।वेदांत एक साधारण-सा लड़का था—ना ज्यादा दोस्त, ना ज्यादा बातें। बस कोने की बेंच बैठकर ड्रॉइंग बनाना उसका शौक था।दूसरी ओर थी रिया—कक्षा की सबसे चंचल लड़की। उसका स्वभाव ही ऐसा था कि हर कोई उसकी तरफ खिंच जाता।रिया और वेदांत का कोई सीधा रिश्ता नहीं था। मगर वेदांत की कॉपी के हर पन्ने पर रिया की ही तस्वीरें बनी होतीं। उसका चेहरा, उसकी मुस्कान—सबकुछ वह अपनी पेंसिल से सजाता रहता।---अनजानी नज़दीकियाँएक दिन रिया ने अचानक उसकी कॉपी देख ली।"ये सब… मेरे चित्र?" — उसने हैरानी से पूछा।वेदांत हड़बड़ा गया।"माफ़ करना… मुझे बस तुम्हें ...और पढ़े
अनकही मोहब्बत - 3
कभी-कभी रूहें वक़्त से नहीं, मोहब्बत से बंधी रहती हैं…और जब कोई जाता है, तो आधा दिल ज़िंदा रह है।”राघव के जाने के बाद मोहम्मदपुर की हवा भी भारी हो गई थी।इमामबाड़े के पास जब लोग उसकी लाश देखे, तो किसी ने उसे हाथ तक नहीं लगाया।कहा गया — “नीच जात था, खुदा का नाम भी नहीं जानता था।”मगर किसी ने यह नहीं सोचा कि उसने अपनी जान उसी इमामबाड़े की दीवार के नीचे दी थी,जहाँ उसने पहली बार मोहब्बत देखी थी।आयरा ने जब यह सुना, तो उसकी आँखों से आवाज़ निकल गई —बस होंठ काँपे, और वो गिर ...और पढ़े
अनकही मोहब्बत - 4
"जहाँ लोग भगवान और खुदा के बीच फर्क करते हैं, वहाँ दिल की बात अक्सर गुनाह बन जाती है..."गाँव नाम था मोहम्मदपुर — एक छोटा सा कस्बा, जहाँ मंदिर की घंटियाँ और अज़ान की आवाज़ एक साथ गूँजती तो थीं,पर दिलों के दरवाज़े अब भी बंद थे।गाँव के एक छोर पर था इमामबाड़ा जाफ़री, और दूसरे छोर पर दलित बस्ती।उसी बस्ती में रहता था राघव मेहतर — एक मेहनती, शांत और बेहद संवेदनशील युवक।दिन में सफाई का काम करता, और रात को पुरानी किताबों में शब्दों की दुनिया बुनता।राघव के पिता सफाईकर्मी थे।लोग उन्हें "मेहतर" कहकर पुकारते — एक ...और पढ़े
अनकही मोहब्बत - 5
कभी-कभी दीवारें सिर्फ़ ईंटों की नहीं होतीं,वो लोग बनाते हैं — मज़हब, जात और डर से।”राघव और आयरा की अब रोज़ की बात बन चुकी थीं।कभी वो इमामबाड़े की मरम्मत के बहाने आता,तो कभी आयरा खुद ही कोई छोटा काम निकाल देती,बस ताकि वो कुछ पल उसके पास रह सके।धीरे-धीरे दोनों की बातें किताबों के पन्नों में छुपी शायरी बन गईं।राघव अब सिर्फ़ मजदूर नहीं रहा था, वो आयरा की खामोश दुआ बन गया था।आयरा को उसकी बातों में वो सच्चाई मिलती जो उसने कभी अपने अमीर घर में नहीं देखी थी।एक दिन आयरा ने पूछा —“राघव, तुम्हें डर ...और पढ़े
अनकही मोहब्बत - 6
ढाका, 1965 – उमस, बारिश और धीमी जलती मोहब्बतभाग 1: उसका दीदार… जैसे हवा भी ठहर जाएकमलगंज की गली पहली बार जब रुबैया ने हसन को देखा,बारिश हल्की थी—पर उसके दिल की धड़कनें तेज़।उसने हसन को पेड़ के नीचे बच्चों को पढ़ाते देखा।कुरता भीगा हुआ, बाल माथे पर चिपके हुए,और उसके होठों पर वो नरम, धीमी मुस्कान…रुबैया की उंगलियाँ अनजाने में दुपट्टे को कसने लगीं।उसे समझ नहीं आया—बारिश ज़्यादा गर्म थी… या वो।हर दिन वह दूर खड़ी रहती,पर उसकी आँखें एक पल के लिए भी हसन से हटती नहीं थीं।जब हवा तेज़ चलती, उसके दुपट्टे का सिरा उड़कर उसके ...और पढ़े