ऑगस्तो पिनोशे उगार्ते - एक तानाशाह की सत्य कथा

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25 नवंबर 1915 की सुबह वालपाराइसो की संकरी गलियों में एक बच्चे की किलकारी गूँजी। ऑगस्तो पिनोशे उगार्ते का जन्म हुआ था। आसमान में बादल छाए थे, और हवा में नमकीन ठंडक थी—समुद्र के किनारे बसा यह शहर उस दिन अनजाने में एक तानाशाह को गले लगा रहा था। उसका घर सादा था—लकड़ी की दीवारें, टीन की छत, और एक छोटा-सा आँगन। पिता ऑगस्तो पिनोशे वेरा सीमा शुल्क का छोटा-मोटा अधिकारी था, और माँ अवेलिना उगार्ते अपने छह बच्चों को पालने में दिन-रात एक कर देती थी। छोटा ऑगस्तो उनके बीच सबसे चुपचाप था—नन्हीं आँखों में एक अजीब-सी चमक, जो कुछ बड़ा करने की भूख दिखाती थी।

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ऑगस्तो पिनोशे उगार्ते - एक तानाशाह की सत्य कथा - भाग 1

ऑगस्तो पिनोशे उगार्ते - एक तानाशाह की सत्य कथाभाग 1: एक तानाशाह का जन्म नवंबर 1915 की सुबह वालपाराइसो की संकरी गलियों में एक बच्चे की किलकारी गूँजी। ऑगस्तो पिनोशे उगार्ते का जन्म हुआ था। आसमान में बादल छाए थे, और हवा में नमकीन ठंडक थी—समुद्र के किनारे बसा यह शहर उस दिन अनजाने में एक तानाशाह को गले लगा रहा था। उसका घर सादा था—लकड़ी की दीवारें, टीन की छत, और एक छोटा-सा आँगन। पिता ऑगस्तो पिनोशे वेरा सीमा शुल्क का छोटा-मोटा अधिकारी था, और माँ अवेलिना उगार्ते अपने छह बच्चों को पालने ...और पढ़े

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ऑगस्तो पिनोशे उगार्ते - एक तानाशाह की सत्य कथा - भाग 2

1970 की सर्दियों में सैंटियागो की हवा में तनाव था। सल्वाडोर अयेंदे राष्ट्रपति बन चुका था। सड़कों पर समाजवादी गूँज रहे थे—"जनता की सरकार, जनता के लिए!" लेकिन ऑगस्तो पिनोशे के लिए ये नारे जहर थे। वह अपने सैन्य ठिकाने पर बैठा था। उसकी मेज पर अयेंदे का भाषण चल रहा था—रेडियो की आवाज में उत्साह था, पर ऑगस्तो की आँखों में आग सुलग रही थी। उसने रेडियो बंद किया और अपनी बंदूक साफ करने लगा। हर गोली को वह प्यार से सहलाता था, जैसे वह उसका सबसे करीबी दोस्त हो। उसने अपने सहायक से कहा, "यह आदमी देश ...और पढ़े

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ऑगस्तो पिनोशे उगार्ते - एक तानाशाह की सत्य कथा - भाग 3

11 सितंबर 1973 की रात सैंटियागो में सन्नाटा था, पर यह सन्नाटा शांति का नहीं, मौत का था। ऑगस्तो अपने नए मुख्यालय में बैठा था। उसकी मेज पर एक नक्शा बिछा था, जिस पर लाल निशान लगे थे—हर निशान एक दुश्मन का ठिकाना। उसकी उंगलियाँ नक्शे पर रेंग रही थीं, जैसे कोई शिकारी अपने अगले शिकार को चुन रहा हो। बाहर सड़कों पर सैनिकों की बूटों की आवाज गूँज रही थी। हर गली, हर घर में डर का काला साया मंडरा रहा था। ऑगस्तो ने अपनी वर्दी की आस्तीन ऊपर चढ़ाई और अपने कमांडर को बुलाया। "शुरू करो," उसने ...और पढ़े

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ऑगस्तो पिनोशे उगार्ते - एक तानाशाह की सत्य कथा - भाग 4

13 सितंबर 1973 को सैंटियागो में सूरज फिर निकला, पर उसकी गर्मी किसी को नहीं छू सकी। शहर अब खामोश कब्रगाह था। ऑगस्तो पिनोशे अपने कार्यालय में बैठा था। उसकी मेज पर दुनिया भर के अखबारों की कटिंग्स बिछी थीं—"चिली में तख्तापलट," "अयेंदे की मौत," "सैन्य शासन की शुरुआत।" उसने एक अखबार उठाया और पढ़ा। उसके होंठों पर हल्की-सी मुस्कान आई—वह अब सिर्फ चिली का नहीं, दुनिया का हिस्सा बन चुका था। लेकिन यह मुस्कान खुशी की नहीं, बल्कि एक विजेता की थी, जो अपने दुश्मनों को कुचल चुका था।दुनिया की नजर अब ऑगस्तो पर थी। अमेरिका ने चुपचाप ...और पढ़े

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ऑगस्तो पिनोशे उगार्ते - एक तानाशाह की सत्य कथा - भाग 5

15 सितंबर 1973 की रात सैंटियागो में आसमान काला था, जैसे चिली का भविष्य उसमें डूब गया हो। नेशनल की ऊँची दीवारों के पीछे चीखें गूँज रही थीं, जो शहर की खामोश गलियों तक पहुँचती थीं। ऑगस्तो पिनोशे अपने सैन्य मुख्यालय में बैठा था। उसकी मेज पर एक पुराना रेडियो बज रहा था, जिसमें उसका ही भाषण बार-बार दोहराया जा रहा था—“चिली अब सुरक्षित है। दुश्मनों का सफाया होगा।” उसकी उंगलियाँ रेडियो के बटन पर थिरक रही थीं, और उसकी आँखों में एक ठंडी चमक थी—वह न सिर्फ सत्ता का स्वामी था, बल्कि डर का देवता बन चुका था। ...और पढ़े

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ऑगस्तो पिनोशे उगार्ते - एक तानाशाह की सत्य कथा - भाग 6

17 सितंबर 1973 की सुबह सैंटियागो में सूरज धुंध के पीछे छिपा था, जैसे वह भी ऑगस्तो पिनोशे के से डर रहा हो। शहर की सड़कें अब लाशों और खून के धब्बों से सनी थीं। हर गली में सैनिकों के भारी बूटों की गड़गड़ाहट गूँज रही थी, और हर घर में सन्नाटा पसरा था—एक ऐसा सन्नाटा जो चीखों से ज्यादा खतरनाक था। ऑगस्तो अपने सैन्य मुख्यालय में बैठा था। उसकी मेज पर एक काला टेलीफोन रखा था, जो हर कुछ मिनटों में बजता था। हर कॉल एक नई मौत की खबर लाता था, और हर खबर के साथ ऑगस्तो ...और पढ़े

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ऑगस्तो पिनोशे उगार्ते - एक तानाशाह की सत्य कथा - भाग 7

भाग 7: कब्रों का शहर18 सितंबर 1973 की सुबह सैंटियागो में हवा ठंडी थी, पर उसमें मौत की गंध थी। शहर अब एक विशाल कब्रगाह बन चुका था, जहाँ हर गली में खून के धब्बे और हर घर में डर की साये मंडरा रहे थे। ऑगस्तो पिनोशे अपने सैन्य मुख्यालय में खड़ा था, एक बड़े शीशे के सामने। उसकी वर्दी पर सितारे चमक रहे थे, और उसकी आँखों में एक ऐसी ठंडक थी जो बर्फ को भी शर्मसार कर दे। वह अपने प्रतिबिंब को देख रहा था—एक तानाशाह, जिसने चिली को अपने लोहे के पंजों में जकड़ लिया था। ...और पढ़े

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ऑगस्तो पिनोशे उगार्ते - एक तानाशाह की सत्य कथा - भाग 8

भाग 8: सायों का शिकार21 सितंबर 1973 की रात सैंटियागो में अंधेरा गहरा था, जैसे चिली की आत्मा काले में डूब गई हो। सड़कों पर सैनिकों की बूटों की गड़गड़ाहट और DINA के काले वैन की आवाजें गूँज रही थीं। हर घर में खामोशी थी, पर यह खामोशी डर की थी, जो हड्डियों तक समा चुकी थी। ऑगस्तो पिनोशे अपने सैन्य मुख्यालय में बैठा था। उसकी मेज पर एक पुराना रेडियो बज रहा था, जिसमें उसका ही भाषण दोहराया जा रहा था—“चिली मेरे नियमों से चलेगा। दुश्मन जीवित नहीं रहेंगे।” उसकी उंगलियाँ मेज पर रखे चाकू को सहला रही ...और पढ़े

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