पात्र परिचय - सलोनी - छुटकी दीदी भाग्या - बड़ी बहन ज्योत्सना - माँ अमर - भाग्या का पति देवी सहाय - नाना शारदा देवी - नानी सीताराम - माँ का चचेरा भाई सुकांत बाबू - नायक बिमला - सुकांत बाबू की माँ सिमरन - छुटकी की सहेली बबुआ, बेबी - भाग्या के जुड़वाँ बच्चे अग्रवाल साहब व वीणा - ज्योत्सना के पड़ोसी ——————————————————————————————- - 1 - प्रत्येक बार रविवार का दिन उबाऊ लगने लगा तो सलोनी अपनी चित्रकला में मस्त रहने लगी। इससे समय का सदुपयोग हो जाता और धीरे-धीरे उसके बनाए चित्रों का संग्रह होने लगा। आज उसकी प्राचार्या ने स्कूल की स्मारिका के लिए एक आवरण चित्र बनाने का दायित्व सौंपा तो उनकी बात सुनकर वह बहुत खुश हुई थी - ‘सलोनी, मैं सोचती हूँ कि इस बार विद्यालय की वार्षिक पत्रिका का आवरण तुम अपने हाथों से बनाओ। जब हमारे पास चित्रकला के इतने निपुण अध्यापक हैं तो बाहर से चित्र क्यों बनवाएँ।’ ‘जी मैम, धन्यवाद। हम पत्रिका के लिए दो-तीन चित्र बनाकर आपको दिखा देंगे, उनमें से जो आपको अच्छा लगे, चुन लेना।’ ‘सलोनी, धन्यवाद तो मुझे तुम्हारा करना चाहिए। वास्तव में, तुम एक श्रेष्ठ शिक्षिका हो। कोई और शिक्षिका होती तो नाक-भौंह सिकोड़ती …. यही तो एक सच्चे कलाकार में खूबी होती है। वह अपने कर्त्तव्य-बोध से कभी पीछे नहीं हटता।’ ‘मैम, यह तो हमारी पसन्द का काम है। हम ख़ुशी-ख़ुशी इस काम को करेंगे। कल रविवार है, सम्भव है, हम कल ही चित्र बना लें।’

Full Novel

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छुटकी दीदी - 1

(कैंसर जागरूकता पर केन्द्रित उपन्यास) डॉ. मधुकांत ————————————— पात्र परिचय - सलोनी - छुटकी दीदी भाग्या - बड़ी बहन - माँ अमर - भाग्या का पति देवी सहाय - नाना शारदा देवी - नानी सीताराम - माँ का चचेरा भाई सुकांत बाबू - नायक बिमला - सुकांत बाबू की माँ सिमरन - छुटकी की सहेली बबुआ, बेबी - भाग्या के जुड़वाँ बच्चे अग्रवाल साहब व वीणा - ज्योत्सना के पड़ोसी ——————————————————————————————- - 1 - प्रत्येक बार रविवार का दिन उबाऊ लगने लगा तो सलोनी अपनी चित्रकला में मस्त रहने लगी। इससे समय का सदुपयोग हो जाता और धीरे-धीरे उसके ...और पढ़े

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छुटकी दीदी - 2

- 2 - नाना जी का स्वर्गवास हुआ तब ज्योत्सना सलोनी को लेकर कोलकाता आई थी। ज्योत्सना के अतिरिक्त जी की कोई सन्तान नहीं थी। इसलिए सब उत्तरदायित्व ज्योत्सना को ही पूरे करने होते थे। नाना देवी सहाय कोलकाता में बारदाने की दलाली करते थे तो नानी शारदा देवी अपना घर सँभालती थी। नानी पढ़ी तो थी केवल आठ दर्जे तक, लेकिन उनका गला बहुत मीठा था, इसलिए आस-पड़ोस के शादी-विवाह, तीज-त्योहार पर उनको बुलाया जाता और गाने का आग्रह भी किया जाता। नानी गाने के लिए भजन स्वयं लिखा करती थी। नाना जी प्रायः अस्वस्थ रहते थे, फिर ...और पढ़े

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छुटकी दीदी - 3

- 3 - बचपन का तो सलोनी को बहुत कुछ याद नहीं। माँ के पास तो वह आठ वर्ष की आयु तक रही। तीसरी कक्षा में माँ उसे नानी के पास छोड़ गई थी। भाग्या उससे दो वर्ष बड़ी थी। इतना तो उसे याद है कि बड़ी होने के कारण भाग्या उससे फल-मिठाई छीन कर खा जाया करती थी। सलोनी कभी उससे झगड़ा नहीं करती बल्कि भाग्या के व्यवहार को देखकर माँ ही उसे डाँटती, ‘बड़की, तुझे लाज नहीं आती, अपनी छुटकी से मिठाई छीन कर खा जाती हो।’ माँ हम दोनों को प्यार से छुटकी और बड़की ही ...और पढ़े

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छुटकी दीदी - 4

- 4 - नानी के पास ज्योत्सना का फ़ोन आया कि भाग्या की शादी निश्चित कर दी है। कानपुर व्यापारी परिवार है। लड़का हमारी भाग्या से तो कम पढ़ा है, परन्तु लोहे की दुकान पर बैठता है, खूब कमाता है। घर का मकान, दुकान, ज़मीन, जायदाद सब अच्छा है। फ़ोन दूसरे कान से लगाकर कहा, ‘माई, परिवार थोड़ा लालची तो लगता है, परन्तु एक बार ताक़त लगा देंगे तो लड़की सारी उम्र सुख से रहेगी। शादी का दिन निश्चित होने पर आपको खबर दूँगी। आप दोनों एक सप्ताह पूर्व आकर सब काम सँभाल लेना।’ नानी हाँ-हूँ करते हुए सुनती ...और पढ़े

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छुटकी दीदी - 5

- 5 - सलोनी घर लौटी तो नानी मोबाइल पर माँ से बातें कर रही थी। उसे देखते ही ने कहा, ‘लो, सलोनी भी आ गई है, उसी से बातें कर ले,’ कहते हुए नानी ने फ़ोन सलोनी को सौंप दिया। ‘प्रणाम माँ।’ ‘ख़ुश रहो बेटी सलोनी।’ ‘कैसी हो माँ?’ ‘कैसी हूँ, मैं क्या बताऊँ? कुछ समझ नहीं आ रहा, क्या करूँ? बड़की की शादी हुए तीन माह बीत गए। तुम तो नानी के साथ चली गई। सारा दिन घर मैं अकेली …। दिन पहाड़-सा लगता है। ना कुछ खाने को मन करता है, ना कुछ बनाने को। सुबह ...और पढ़े

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छुटकी दीदी - 6

- 6 - एक माह पूर्व ज्योत्सना कोलकाता आ गई। उसके साथ सिमरन भी कोलकाता घूमने आ गई। उसके की छुट्टियाँ थीं तो उसके पापा ने उसे भी भेज दिया। सामान की गिफ़्ट पैकिंग होने लगी। बच्चे का जन्म कानपुर में होना था और उसके स्वागत की तैयारी कोलकाता में हो रही थी। एक दिन सुबह-सवेरे सलोनी का फ़ोन बजा तो ख़ुशी का समाचार सुनकर वह उछल पड़ी। बड़ी दीदी भाग्या को जुड़वाँ बच्चों का जन्म हुआ था। माँ किचन में थी और नानी पूजा गृह में बैठी थी। सलोनी वहीं से चिल्लाई, ‘अरे सुनो भाई, सुनो, हमारी बड़ी ...और पढ़े

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छुटकी दीदी - 7

- 7 - आज ज्योत्सना सलोनी के बालों में तेल लगाने बैठ गई। अपनी माँ की गोद में सटकर उसे बहुत अच्छा लगा। आज उसने अनुभव किया, ममता की छाँव में कितना आनन्द होता है! ‘माँ, तीन दिन बाद सिमरन के साथ आपकी दिल्ली जाने की टिकट है।’ सलोनी चाहती थी कि माँ इसी प्रकार सदैव उसे गोद में बिठाए रहे। माँ से अलग रहकर बहुत प्यासा रहा उसका बचपन। स्कूल में कई बार कठिन क्षण आते तो उसे अपनी माँ की बहुत याद आती थी। ‘बेटी, दो मास हो गए अपना घर छोड़े, फिर सिमरन के स्कूल भी ...और पढ़े

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छुटकी दीदी - 8

- 8 - सेन्ट्रल स्कूल का नियुक्ति पत्र आया तो कौतुहलवश खोलते हुए सलोनी के हाथ काँपने लगे। ‘नानी, नौकरी लग गई और वह भी दिल्ली में,’ ज़ोर से चिल्लाकर सलोनी नाचने लगी। दोनों हाथ ऊपर उठाकर ईश्वर का धन्यवाद करने लगी। आवाज़ सुनकर नानी भी वहाँ आ गई, ‘क्या हुआ छुटकी?’ ‘नानी, हमारी नौकरी लग गई स्कूल में, और वह भी दिल्ली के स्कूल में।’ सलोनी नानी को गोद में उठाकर नाचने लगी। नानी ने इस ख़ुशी पर मन्दिर में पाँच सौ रुपए का प्रसाद बाँटने का संकल्प लिया था। ‘हे भगवान, आपने मेरी छुटकी की सब ज़िम्मेदारी ...और पढ़े

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छुटकी दीदी - 9

- 9 - एक छोटा-सा परिवार एकत्रित हुआ तो माँ के घर में शादी जैसा त्योहार हो गया। सलोनी नानी कोलकाता से पहुँच गईं। बड़की दीदी भाग्या अपने दोनों बच्चों के साथ आ गई तथा सिमरन भी सारा दिन नन्हे-मुन्ने बच्चों के साथ खेलने के लालच में वहीं रहने लगी। ख़ाली-ख़ाली रहने वाले परिवार के सदस्य अचानक व्यस्त रहने लगे। सलोनी ने नौकरी सम्बन्धी सारी औपचारिकताएँ पूरी कर दीं। स्कूलों में ग्रीष्म अवकाश की छुट्टियाँ चल रही थीं, इसलिए एक जुलाई से स्कूल खुलेंगे तो सलोनी की ड्यूटी चालू हो जाएगी। बचपन से सलोनी की आदत थी, वह अपने ...और पढ़े

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छुटकी दीदी - 10

- 10 - नानी अपने मकान की चाबी सुकांत की अम्मा को ही सौंप कर आती थी। पीछे से जाने क्या काम पड़ जाए। नानी ने उसको अपने आने का समाचार भी भिजवा दिया था। इसका यह फ़ायदा होता था कि नानी के पहुँचने से पहले ही सुकांत की अम्मा बाई को बुलाकर सारा मकान साफ़ करवा देती थी। नानी और सलोनी ने घर में प्रवेश किया तो उन्हें ऐसा लगा ही नहीं कि वे इस घर में एक माह बाद लौटी हैं। सुकांत की अम्मा ने बताया कि सुकांत का कोर्स पूरा हो गया है और वह आजकल ...और पढ़े

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छुटकी दीदी - 11

- 11 - दिल्ली के लिए सलोनी को विदा करने के लिए सुकांत ने उसे स्टेशन पर मिलना था। के चलने का समय दस बजे था। सुकांत आठ बजे ही स्टेशन पर पहुँच गया। इंतज़ार की घड़ियाँ परेशान करने लगीं तो सलोनी को फ़ोन लगाया। ‘कहाँ हो सलोनी?’ ‘रस्ते में … ऑफिस आवर है … इसलिए कुछ जाम लगा हुआ है, आप कहाँ हो?’ ‘मैं तो पहुँच गया हूँ।’ ‘ठीक है, हम टैक्सी स्टैंड के बाहर ही आपको मिलते हैं।’ ‘ठीक है।’ ‘शायद हम पाँच मिनट में पहुँच जाएँगे।’ दोनों सामान के साथ प्लेटफ़ार्म पर पहुँच गए, परन्तु अभी ...और पढ़े

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छुटकी दीदी - 12

- 12 - सुबह सलोनी ने अग्रवाल जी के घर जाकर बताया, ‘अंकल, नानी जी ने हाँ कर दी अब आप चटर्जी जी से फ़ाइनल कर लें।’ ‘बैठो बेटी, अब तुम्हारे सामने ही बात कर लेता हूँ, क्योंकि किसी बात में पर्दा नहीं होना चाहिए।’ फ़ोन मिलाते हुए अग्रवाल जी ने स्पीकर ऑन कर लिया, ‘चटर्जी जी, बधाई हो आपको। कोलकाता भी बात हो गई है। अब सबकी पूर्ण सहमति है।’ ‘ठीक है, आपको भी बधाई अग्रवाल जी।’ ‘यह बताओ, रक़म का भुगतान कैसे करोगे?’ ‘देखो अग्रवाल जी, आप बीच में हैं तो मुझे कोई चिंता नहीं है। पचास ...और पढ़े

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छुटकी दीदी - 13

- 13 - सब शीतकालीन अवकाश की प्रतीक्षा कर रहे थे। सलोनी ने सुकांत बाबू से मिलने के लिए बनवा ली। बाड़ी की रजिस्ट्री भी होनी थी। नानी से अधिक सुकांत बाबू सलोनी की प्रतीक्षा कर रहे थे। आख़िर वह दिन भी आ गया और सलोनी ट्रेन में बैठकर कोलकाता चली गई। आधी से अधिक बाड़ी ख़ाली हो गई थी। सुकांत बाबू ने अपना फ़्लैट भी ख़ाली करा लिया था। यहाँ तो वे लोग इसलिए रहते थे कि उनके पिताजी का पास की मार्केट में व्यवसाय था। इसके अतिरिक्त यहाँ के लोगों से इतना प्यार हो गया था कि ...और पढ़े

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छुटकी दीदी - 14

- 14 - सलोनी के फ़्लैट के पीछे कुछ झुग्गियाँ थीं। वहाँ की अधिकांश औरतें यहाँ की पॉश कॉलोनी घरों में काम करती थीं। एक कामवाली के माध्यम से सलोनी ने पढ़ाने के लिए कुछ बच्चे एकत्रित कर लिए। माँ तो इस काम से खुश नहीं थी, परन्तु नानी ख़ुश थी। नानी की सहमति मिलने पर माँ भी कुछ विरोध नहीं कर पाती थी। धीरे-धीरे नानी भी यहाँ के समाज से जुड़ने लगी। सुबह मन्दिर जाती। दोपहर को मन्दिर में कथा पढ़ी जाती तो नानी प्रतिदिन सुनने जाती। बाड़ी को बेचने से मिली रक़म की व्यवस्था अग्रवाल जी की ...और पढ़े

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छुटकी दीदी - 15

- 15 - अग्रवाल जी जब चले गए तो नानी के साथ सलोनी नए फ़्लैट में चली गई। सारा फ़र्नीचर, ताज़े रंग रोगन से चमकती दीवारें . … खिड़कियों-जंगलों पर लटकते नए व क़ीमती पर्दे … बिल्कुल आधुनिक किचन …. धूप और ताज़ा हवा से भरपूर। सब कुछ देखकर, उनका प्रयोग करके नानी बहुत ख़ुश थी। बार-बार कहती, ‘सलोनी, तू तो मुझे स्वर्ग में ले आई है। हम तो पैसा खर्च करके भी घर की इतनी सजावट नहीं कर सकते थे।’ ‘हाँ नानी, यह तो हमारी माँ के फ़्लैट से भी कई गुना अच्छा है। मेरा मन तो करता ...और पढ़े

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छुटकी दीदी - 16

- 16 - चौथे दिन सलोनी ने डॉक्टर भाटिया से फ़ोन पर बात की, ‘डॉक्टर साहब, हमारी रिपोर्ट आ क्या?’ ‘आ गई, बेटा।’ ‘तो क्या हम लेने आ जाएँ?’ ‘तुम कहाँ से आती हो, बेटी?’ ‘पश्चिम विहार से।’ ‘देखो, आना चाहो तो कभी भी आ जाओ, परन्तु मेरा क्लीनिक रोहिणी में है। तुम चाहो तो वहाँ भी आ सकती हो। वहाँ भी तुम्हें कुछ खर्च नहीं करना पड़ेगा।’ ‘यह तो बहुत अच्छी बात है डॉक्टर साहब। क्या हम आज ही आपके क्लीनिक पर आ सकते हैं?’ ‘ठीक है, शाम को आ जाना, मैं तुम्हारी रिपोर्ट ले आऊँगा।’ सलोनी का ...और पढ़े

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छुटकी दीदी - 17

- 17 - रात को ही ज्योत्सना ने सभी आवश्यक सामान बैग में रख लिया। उसने अब अपने आप मज़बूत कर लिया था। उसकी समझ में आ गया था कि मैं कमजोर पड़ गई तो बेचारी सलोनी का क्या होगा। इसलिए उसने अपने आप को मज़बूत कर लिया। लड़की का काम है, इसलिए उसने अधिक लोगों को बताना भी ठीक नहीं समझा। कल को विवाह भी करना है। इसलिए सुबह होते ही ज्योत्सना सलोनी को लेकर आश्रम में आ गई। वैसे तो ‘कालीधाम आश्रम’ में बने हॉस्पिटल में सब उपचार नि:शुल्क था, फिर भी दान से एकत्रित चंदे के ...और पढ़े

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छुटकी दीदी - 18

- 18 - सोमवार को सलोनी स्कूल गई तो उसने निश्चय कर लिया कि स्कूल के बच्चों के माध्यम वह प्रत्येक घर में कैंसर के प्रति जागरूकता फैलाने का प्रयास करेगी। वह कोई डॉक्टर तो नहीं जो किसी के कैंसर का उपचार कर सके, परन्तु वह एक शिक्षिका है। वह समाज में इतनी जागरूकता फैला सकती है कि कैंसर जड़ से समाप्त हो जाए। सलोनी ने स्कूल में कैंसर के विरूद्ध एक अभियान चलाने के लिए प्राचार्या जी से अनुमति माँगी तो उन्होंने सहर्ष स्वीकृति प्रदान कर दी। प्रथम दिन सलोनी ने प्रार्थना सभा में सब बच्चों को कैंसर ...और पढ़े

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छुटकी दीदी - 19

- 19 - उमंग और ख़ुशी के साथ सलोनी और माँ घर लौटीं तो घर में हंगामा मचा हुआ भाग्या का सोने का कंगन गुम हो गया था, जो कभी माँ ने उसे दिया था। ‘सलोनी, मेरा तो यहाँ आना ही ख़राब हो गया। मेरा सोने का कंगन गुम हो गया। यहाँ आते हुए मैंने अपनी अटैची में रखा था। मेरी सास को पता लगेगा तो मेरा जीना दूभर कर देगी। हे भगवान, अब मैं क्या करूँ? कल से घर में नौकर घूम रहे हैं, इतने रिश्तेदार आए हैं, अब मैं किस-किस की तलाशी लूँ?’ ज़ोर-ज़ोर से रोती हुई ...और पढ़े

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छुटकी दीदी - 20

- 20 - ज्योत्सना तो अकेली पड़ गई है, यह सोचकर भाग्या ने एक सप्ताह के कपड़े अपने बैग डालने आरम्भ कर दिए। अपनी सूती साड़ी को बैग में रखने लगी तो सोने का कंगन निकल कर फ़र्श पर घूमने लगा। कंगन उठाकर एक दृष्टि उसने अपनी कलाई में पहने कंगन पर डाली और दूसरी दृष्टि हाथ में लिए कंगन पर। दोनों कंगन अपने पास देखकर उसका दिमाग़ घूम गया। कंगन के चोरी होने और सलोनी द्वारा खोज कर देने का सारा दृश्य उसकी नज़रों के आगे आ गया। अचानक वह बहुत ज़ोर से चिल्लाई, ‘हे भगवान, आज मेरी ...और पढ़े

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छुटकी दीदी - 21 - अंतिम भाग

- 21 - बारह दिन बाद रविवार को सलोनी की तेरहवीं एवं श्रद्धांजलि सभा का आयोजन स्वामी जी के में किया गया। हॉस्पिटल के ऊपर चमकने वाली लाइट का सुन्दर बोर्ड लगा दिया गया था - ‘सलोनी कैंसर हॉस्पिटल एण्ड रिसर्च सेंटर’। आज इसका उद्घाटन प्रदेश के मुख्यमंत्री के हाथों होना था। आश्रम और हॉस्पिटल दोनों को बहुत सुन्दर ढंग से सजाया गया था। आश्रम में सुबह से भंडारा चल रहा था। एक सामाजिक संस्था ने सलोनी को श्रद्धांजलि देने के लिए स्वैच्छिक रक्तदान शिविर का आयोजन किया हुआ था, जिसमें युवक और युवतियाँ बड़े उत्साह के साथ रक्तदान ...और पढ़े

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