चूल्हे को फुँकनी से फूँक कर जलाती हुई सिया अपने पल्लू से बार - बार आँखों को पोंछती जाती थी , धुँए की जलन से उसकी आँखें बराबर बह रहीं थीं, शायद लकड़ी गीली थी। बार बार फूँकने से उसे खाँसी आ गयी लेकिन वह अनवरत अपने काम में लगी रही । काहे कि दस भूखे पेट उसका इंतजार कर रहे थे। सास, ससुर , उसका पति जगतराम , उसकी दादी सास, उसके तीन बच्चे , उसकी ननद और उनका बेटा। अँधेरा भी गहरा आया था। यूँ तो गाँव मे बिजली थी पर उनके घर पर नहीं थी क्योंकि पैसा कौन दे ! कमाने वाला एक अकेला मरद जगत राम खाने वाले इतने सारे । एक बड़ी सी कुप्पी नुमा लालटेन जला कर बीच आँगन में रखी हुई थी अगल बगल उसके बच्चे पढ़ने के लिए बैठे थे। दो बेटे बड़े थे एक बिटिया सबसे छोटी थी। वह अभी चलना सीख रही थी। जगत राम शहर चला गया था मजदूरी करने। शाम को जब वह घर आता तो सबके लिए कुछ न कुछ लाता अवश्य । सिया के लिए लाता तो छुपाकर देता । कहीं घर की दो बेढब महिलाएँ देख लें तो बाबा रे ! लंका दहन समझो !
मेदिनी - 1
मेदिनीचूल्हे को फुँकनी से फूँक कर जलाती हुई सिया अपने पल्लू से बार - बार आँखों को पोंछती जाती , धुँए की जलन से उसकी आँखें बराबर बह रहीं थीं, शायद लकड़ी गीली थी। बार बार फूँकने से उसे खाँसी आ गयी लेकिन वह अनवरत अपने काम में लगी रही । काहे कि दस भूखे पेट उसका इंतजार कर रहे थे। सास, ससुर , उसका पति जगतराम , उसकी दादी सास, उसके तीन बच्चे , उसकी ननद और उनका बेटा। अँधेरा भी गहरा आया था। यूँ तो गाँव मे बिजली थी पर उनके घर पर नहीं थी क्योंकि पैसा ...और पढ़े