शीर्षक -खाली पन्ने रूचि दीक्षित रद्दोबदलप्रकृति ने अपनी हर आकृति को इस प्रकार संयोजित किया है कि , हर बदलाव के लिए एक नियत समय निर्धारित कर दिया , फिर वो चाहे पेड़ पौधे हो या मनुष्य | समाज ने भी इन बदलावो को सहज स्वीकार कर इसे अपनी व्यवस्था का रूप दे दिया | जैसे शिक्षा , विवाह, संतान उत्पत्ति यहाँ तक मृत्योपरान्त कर्मकाण्डीय व्यवस्था | मानवीय भावनाएँ भी इन्ही का अनुकरण करती है | किन्तु इसके बावजूद यदि कुछ प्रबल है तो , वह हैं परिस्थतियाँ , जो कभी-कभी असंतुलन का कारण भी बन जाती हैं | यह कहानी भी

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खाली पन्ने - 1

शीर्षक -खाली पन्ने रूचि दीक्षित रद्दोबदलप्रकृति ने अपनी हर आकृति को इस प्रकार संयोजित किया है कि , हर के लिए एक नियत समय निर्धारित कर दिया , फिर वो चाहे पेड़ पौधे हो या मनुष्य | समाज ने भी इन बदलावो को सहज स्वीकार कर इसे अपनी व्यवस्था का रूप दे दिया | जैसे शिक्षा , विवाह, संतान उत्पत्ति यहाँ तक मृत्योपरान्त कर्मकाण्डीय व्यवस्था | मानवीय भावनाएँ भी इन्ही का अनुकरण करती है | किन्तु इसके बावजूद यदि कुछ प्रबल है तो , वह हैं परिस्थतियाँ , जो कभी-कभी असंतुलन का कारण भी बन जाती हैं | यह कहानी भी ...और पढ़े

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