पी कहाँ! पी कहाँ! पी कहाँ! पी कहाँ!; मंगल का दिन और अँधेरी रात, बरसात की रात। दो बज के सत्ताईस मिनट हो आए थे। तीन का अमल। सब आराम में। सोता संसार, जागता पाक परवरदिगार। सन्नाटा पड़ा हुआ। अँधेरा घुप्प छाया हुआ। हाथ को हाथ नहीं सूझता था। दो चीजों से अलबत्ता अँधेरा जरा यों ही-सा कम हो जाता था, और वह भी पलक मारने तक को - एक तो कौंढे के लौंकने से बिजली चमकी और गायब, दूसरे जुगनू की रोशनी। नाखून के बराबर कीड़ा, मगर दामिनी की दमक से मुकाबला करने वाला। आसमान पर वह और जमीन पर यह। कोई मिनकता भी न था। अगर कोई आवाज आती थी तो पत्तों के खड़खड़ाने की। हवा के जन्नाटे के साथ चलने से दरख्तों पत्ते गोया तालियाँ बजाते थे। तारे सब गायब। जमीन से आसमान तक एक ही तरह का अँधेरा छाया हुआ - घटाटोप अँधेरा। अगर हवा तेजी के साथ न चलती तो मूसलाधार मेंह बरसता और खूब दूर-दूर तक बारिश होती।
Full Novel
पी कहाँ? - 1
'पी कहाँ! पी कहाँ! पी कहाँ! पी कहाँ!' मंगल का दिन और अँधेरी रात, बरसात की रात। दो बज सत्ताईस मिनट हो आए थे। तीन का अमल। सब आराम में। सोता संसार, जागता पाक परवरदिगार। सन्नाटा पड़ा हुआ। अँधेरा घुप्प छाया हुआ। हाथ को हाथ नहीं सूझता था। दो चीजों से अलबत्ता अँधेरा जरा यों ही-सा कम हो जाता था, और वह भी पलक मारने तक को - एक तो कौंढे के लौंकने से बिजली चमकी और गायब, दूसरे जुगनू की रोशनी। नाखून के बराबर कीड़ा, मगर दामिनी की दमक से मुकाबला करने वाला। आसमान पर वह और जमीन पर यह। कोई मिनकता भी न था। अगर कोई आवाज आती थी तो पत्तों के खड़खड़ाने की। हवा के जन्नाटे के साथ चलने से दरख्तों पत्ते गोया तालियाँ बजाते थे। तारे सब गायब। जमीन से आसमान तक एक ही तरह का अँधेरा छाया हुआ - घटाटोप अँधेरा। अगर हवा तेजी के साथ न चलती तो मूसलाधार मेंह बरसता और खूब दूर-दूर तक बारिश होती। ...और पढ़े
पी कहाँ? - 2
कसबे से डेढ़ कोस के फासले पर एक बड़ा लंबा-चौड़ा अहाता है, दीवारें चौतरफा बहुत ऊँची-ऊँची। अहाते के बड़े के अंदर पहुँचते ही, दूर तक हरी-हरी दूब का, हीरे-सा दमकता हुआ फर्श नजर आता था, और सबके पहले इसी पर नजर पड़ती थी। और इसके चार कोनों पर चार फव्वारे छूटते थे, जिनके पानी से दूब सींची जाती और आँखों को तरावट होती थी। इस दूब के बहुत बड़े तख्ते से हो कर एक और फाटक था। मशहूर था कि सोमनाथ के मंदिर के फाटक के बाद हिंदुस्तान में यह दूसरे नंबर का फाटक है। इस फाटक से दूर तक खुशबूदार फूलों की क्यारियाँ थीं। लाल-लाल फूलों की क्यारियों में गुले-लाला खिला था। मालूम होता था कि फूलों की लाल कुर्तेवाली पलटन किसी पर धावा करने को लैस है। ...और पढ़े
पी कहाँ? - 3
मियाँ जोश की मशहूर चढ़ाई पर एक बहुत ऊँचा टीला था। उस पर एक खस से छाया हुआ खुशनुमा बना हुआ था, और उसी से लगी हुई एक पक्की महलसरा थी, जिसका पत्थर का हम्माम दूर तक अपना जोड़ नहीं रखता था। बँगले से महलसरा को मजबूत-मजबूत तख्तों की छत से मिला दिया था। जब चाहा बँगले को मर्दाना कर दिया, जब चाहा जनाना मकान बन गया। इस बँगले की छत के एक कमरे में एक बूढ़ा रईस अपनी बूढ़ी बीवी के पास बैठा हुआ अकेले में बातें कर रहा था। सिर्फ एक महरी चँवरी लिए हुए पीछे खड़ी थी। ...और पढ़े
पी कहाँ? - 4
पीतल के एक खूबसूरत पिंजड़े में एक काला कोयला-सा जानवर भुजंगे की औलाद, जंगली कौवे का नामलेवा, कोयल का बंद है। और यह पिंजड़ा एक कमरे में खूँटी पर टँगा हुआ है और थोड़ी-थोड़ी देर के बाद जोर-जोर से आवाज लगा रहा है - 'पी कहाँ!' फिर दम ले कर 'पी कहाँ!' फिर जरा देर में - 'पी कहाँ!' इसके जवाब में एक जानवर, उसी रंग, उसी के बराबर वही आवाज लगा रहा है : 'पी कहाँ! पी कहाँ!' आवाज की गूँज इन दोनों की पुकारों की आवाज को दुहराती है। चार आवाजें तो 'पी कहाँ!' की ये आ रही हैं ...और पढ़े
पी कहाँ? - 5
एक बढ़िया और नफीस और खूबसूरत बजरे पर एक बहुत खूबसूरत लड़का एक बड़े लंबे चौड़े तालाब में अपने खेता चला जाता था। साफ चमकता हुआ पानी, मोती को शरमाता था, और सफाई इतनी थी कि पानी की तह में सरसों बराबर चीज भी साफ नजर आती थी। - और बड़ी दर्दभरी, हसरतभरी आवाज में, नीचे सुरों में, काफी की धुन में, यह ठुमरी जो हमने ऊपर लिखी है, गाता था। आवाज और रंग-रूप और बुशरे और चेहरे से उदासी बरसती थी। ठुमरी बहुत अच्छी तरह अदा करता था। नूर का गला था। ...और पढ़े
पी कहाँ? - 6
एक साफ-सुथरी, नफीस-सी जगह पर - जिसके हर पेड़-पालो, फल-फूल जड़ी-बूटी, घास-पत्ती, हवा-पानी, जमीन-आसमान, आस-पास की हर चीज से जंगल में मंगल का सा लुत्फ पैदा होता था - एक छत के बँगले में, जो सादगी मगर करीने और सलीके और तमीज और सफाई के साथ सजा हुआ था, पाँच कमसिन-कमसिन लड़कियाँ, अलग-अलग सज-धज और बनाव-चुनाव के साथ फर्श पर बैठी थीं। शाम का वक्त, सूरज डूब चुका था। तारे यों ही झिलमिलाते आसमान पर कहीं कहीं नजर आते थे। ...और पढ़े
पी कहाँ? - 7
शर को रातब दिया जाता था, और वह साहबजादा, कि खुद रियासत का मालिक था, दिल बहलाने के लिए देख रहा था। एक सिपाही के लौंडे ने शेर की दुम, जो कटघरे के बाहर थी पकड़ के खींची। शेर उस वक्त बकरी की रान खा रहा था। पहले जरा यों ही सा गुर्राया। जब उस लौंडे ने जोर से दुम को खींचा, तो शेर इस जोर से डँकारा और फिरा कि लौंडा गिर पड़ा। शेर बदस्तूर गोश्त खाने लगा। और उस साहबजादे को उस लौंडे की शरारत और बौखलाहट पर बेतरह हँसी आई, - और पहली ही मर्तबा था कि इस मकान में आ कर ये हँसे हों। हँसी के आते ही अचानक उसको ख्याल आया कि - अरे! मैं हँस रहा हँ! हाय, वह बेचारी इस वक्त क्या जाने क्या कर रही होगी, और सोती न होगी तो बेचैन जरूर होगी। और मैं कमबख्त हँस रहा हूँ! ...और पढ़े
पी कहाँ? - 8
अब इधर का हाल सुनिए कि नूरजहाँ बेगम की माँ और बहन उसी जंगल के बाग में साहबजादी की और हिफाजत और इलाज और निगरानी के लिए टिके रहे। पहलेपहल तो नूरजहाँ बेगम लिहाज के मारे दिल ही दिल में 'पी कहाँ! पी कहाँ!' कह कर दिल की जरा-जरा ढारस व दिलासा देती थी, कि ऐसा न हो कि ये लोग यह आवाज सुन कर अपने दिल में कहें कि लड़की हाथ से जाती रही - बिलकुल बदलिहाज हो गई : कल की छोकरी और हमारे सामने यह बदलिहाजी! लेकिन जब जुनून ने औप ज्यादा जोर किया, और सब्र का दामन हाथ से छूटने लगा, - तो शर्म बिला इजाजत गायब-गुल्ला : किसका लिहाज और किसका खयाल, और किसकी शर्म और किसका पर्दा। ...और पढ़े
पी कहाँ? - 9
है दुनिया दुरंगी मकारा-सराय कहीं खूब-खूबाँ, कहीं हाय-हाय दुनिया के यही माने हैं। गो यह शेर भदेसल है, मगर कदर के है। कितना सच्चा मजमून हैं! दुनिया और दुनियावालों की दोरंगी जाहिर है। मुँह पर कुछ, पीठ-पीछे कुछ। मकारा-सराय के यह मानी, कि मकर की जगह : मकर और जोर-जबरदस्ती से भी हुई। दूसरे मिसरे के मजमून से कौन इनकार कर सकता है। कोई हँस रहा है, तो कोई रो रहा है। किसी की बरात धूम-धाम से ससुराल जाती है, किसी का जनाजा लोग कब्रिस्तान लिए जाते हैं। एक के यहाँ खुशी के शादियाने बजते हैं, दूसरे के यहाँ कुहराम मचा हुआ है। नूरजहाँ बेगम पोतड़ों की रईसा - जिस दिन पैदा हुई थीं मियाँ जोश की चढ़ाई पर घर-घर खुशी हुई थी। एक हफ्ते तक तोरे-बंदी, दस रोज तक नाच-रंग। जब लड़की बड़ी हुई तो घर भर की पुतलियों का तारा, बच्चा, सब की जान से प्यारा। आसमान के तारे और चिड़िया का दूध भी माँगती तो माँ-बाप ला कर मौजूद कर देते। ...और पढ़े