आत्मग्लानि

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ईर्ष्या वह अग्नि है जिसमे जलकर सभी कुछ राख हो जाता है ईर्ष्या की आग अच्छे-अच्छों को शिखर से गिराकर मिट्टी में मिला देती है इससे हमारा अपना विकास अवरुद्ध हो जाता है इस अवगुण का असर हमारे शारीरिक और मानसिक विकास पर इतना बुरा पड़ता है कि हम समाज में अपनी पहचान,अपना सम्मान-सभी कुछ गवां बैठते हैं हम दूसरों से ईर्ष्या करने के कारण अपने जीवन के लक्ष्य को भूलकर पथभ्रष्ट हो जाते हैं प्रगति के पथ पर बढ़ते हमारे कदम बोझिल हो जाते हैं और हम लक्ष्य से भटककर पतनोन्मुखी हो जाते हैं ईर्ष्या के चलते हम कहीं न कहीं अपनी ही हानि कर रहे होते हैं ईर्ष्या के दुष्परिणाम जब हमारे सामने आते हैं तो हम ठगे से रह जाते हैं परन्तु ईर्ष्या का दुष्परिणाम हमें भुगतना ही पड़ता है आत्मग्लानि कहानी बहुत ही सुन्दर ढंग से ईर्ष्या के दुष्परिणाम हमारे सामने लाती है और राहुल के पश्चाताप के माध्यम से ईर्ष्या की बुरी भावना का अंत होना कहानी का एक अत्यंत सुखद मोड़ है यह कहानी हमें प्रेम और मित्रता की ऐसी शिक्षा देती है जिसे अपनाकर हर छात्र अपने जीवन को सुन्दर ढंग से सँवार सकता है और समाज में अपनी एक अलग पहचान बना सकता है