बेरोजगारी के मुखिया

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यह पुस्तक हमारे समाज में फैले हुए इस भ्र्म पर व्यंग है कि आज कल बेरोजगारी बहुत बढ़ गयी है । मेरे विचार से इसका मुख्य कारण हम सब अधिक हैं , हम नही सोचते कि हमारी योग्यता क्या है , नही सोचते कि हम अपने काम के प्रति कितने जिम्मेदार हैं । बस एक काम पत्थर पूजना नही भूलते , अपने अंदर की योग्यता को देखने का वक्त ही नही है किसी के पास । वैसे तो इस व्यंग में जो भी प्रश्न या विचार हैं ओ सब मेरे व्यक्तिगत विचार हैं । मेरा किसी भी धर्म या सम्प्रदाय के किसी व्यक्ति को ठेस पहुंचाने का कोई उद्देश्य नही है । ध्यान से पढ़िए और आनंद लीजिये ।।