आइना सच नहीं बोलता

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दीपक का घर तक पहुंचना मुश्किल हो रहा था। विश्वास नहीं हो रहा था कि पिता जी नहीं रहे। उसे याद आ रहा था कि जब वह घर से निकला था तो उन्होंने कहा था कि वह उनकी लाश के ऊपर से ही जायेगा। और यह भी कि अगर वो चला गया तो फिर उनका मुख न देख पायेगा ,अब लौटा तो मेरे मरे मुहँ पर ही लौटेगा ! ओह्ह ! पिता जी ! यह आपने क्या कह दिया था जो सच हो गया ! गले तक रुलाई भरी पड़ी थी। घर पहुँच कर, कार से उतरा नहीं गया। किसी ने सहारा दे कर उतारा तो दिल की गहराइयों से रुदन फट पड़ा। पिता जी के पैरों के पास गिर के रो पड़ा। यह देख अमिता और नीतू -मीतू भी उसके पास पहुँच गई। चारों ही आपस में गले लग कर लिपट कर रो पड़े। सबका साँझा दुःख एक साथ करुण -क्रंदन में बदल गया था। हर कोई रो रहा था। किसी के पास चुप होने की जैसे कोई वजह ही नहीं थी। समरप्रताप सिंह चल पड़े थे अपनी अंतिम यात्रा पर ! किसी की कोई भी करुण पुकार उनको सुनाई नहीं दे रही थी। चूड़ियाँ तोड़ती अमिता थी या करुण क्रंदन करती बेटियाँ या मूक हो आंसूं बहती नंदिनी और रमा किसी की आवाज़ आज समर प्रताप तक नही पहुँच पा रही थी