# आइना सच नही बोलता - 21

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नंदिनीको अचरज हो रहा था। उसके पिता ने माँ को कभी इस तरह बाहर की बातों में शामिल न किया ।वे तो पिता के लिए बस घर की देहरी के अंदर की सेविका थीं । क्या सोच रही हो, नंदिनीबिटिया नंदिनी मायके की सोच में लिपटी थी । ससुर के इसतरह पूछने पर ख़याल का एक टुकड़ा उमड़ आया कि इसी पिता के बेटे नेकभी उसके दर्द की एक चिलक को सहलाने की कोशिश भी न की । और झरझर अश्रुओंका झरना टूट पड़ा उसकी आँखों से । कितने ही ग़मज़दा पल पलकों के नीचे छुपा लो, मन की तहपर नेह के दो बोल उनखुश्क पलों को उघाड़ ही देते हैं । और फिर वह जमीं रेशमी हो जाती हैअपनेपन की मिटटी से । आप लड़िये न चुनाव,पापाजी । लो अब तो आपकीबिटिया ने भी अपनीमंजूरी दे दी । अमिता भी नंदिनी के आंसुओं से भीग गई थी । तीनों के चेहरों पर तनावरहित खिलखिलाहट थी । ठीक है बिटिया जैसी तुम्हारी मर्जी । तुमने तो हमें हर तरह जीत लिया। जहाँ जीतना था वहां से तो बुरी तरह हार बैठा हूँ। पुन: बेटे की