आइना सच नहीं बोलता - 19

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नंदिनी की चुप को सौ बरस हो गये हैं. ये वो चुप है जो कुछ घंटों में सौ बरस लाँघ लेती है. ये लंबाई में नहीं गहराई में नापी जाती है. दीपक की माँ अमिता कमरे के दरवाज़े तक आ कर लौट-लौट जाती हैं. लज्जित हैं, भीतर नहीं आ पाती अपनी पुत्रवधू तक. नन्हा दिवित उसके पास सोया ही सोया था, नंदिनी को इसका भी होश नहीं. इससे तो थोड़ा रो लेती, ताने उलाहने देती.. सवाल पूछती.. पर ये चुप बड़ी भारी है.. ये चुप उस पत्थर की तरह है जिसे अमिता अपने गले में बँधा महसूस कर रही हैं. जिसके भार से वो लज्जा और ग्लानि के गहरे सागर में डूबती जा रही हैं.