नंदिनी माँ की बातों के अर्थ खोजने में कुछ पल तक जड़ सी बैठी रह गई ।माँ की आरती और घंटी बजने का स्वर आने लगा तो नंदिनी भी उठ खड़ी हुई ।ख़ुद से एक वादा करते हुए .. ना तो दीपक को ऐसी बेड़ियाँ पहनाने देगी न ही अपने बच्चे को इस परंपरा को बढ़ाने देगी कभी । लेकिन सोच हैं न ,क्या मालूम पूरी होगी भी या नही . भाविष्य के गर्भ में क्या छुपा हैं कोई नही जानता . हवाई किले तो हर कोई बना सकता हैं पूरा करने के लिय जिगरा चाहिए होता हैं . सपने तो उसने भी देखे थे ना आगे पढने के , क्या दिखा पायी हिम्मत कि मुझे अभी विवाह नही करना ......... लडकियां कब अपने लिय जीती हैं उनके हिस्से आती है दो घरो की इज्ज़त , तू तो समझदार हैं कहकर मायके और ससुराल दोनों में रस्मो रिवाजों की बेदी बाँध दी जाती हैं और लड़की उसे ही किस्मत मान कर जीने लगती हैं अपनी जिन्दगी