पहाड़ यह पहाड़ सा पहाड़ वहीं का वहीं सदियों से बैठा समाधिस्थ कोई मेनका न तोड़ पाई इसकी साधना, जाने कब प्रसन्न होंगे प्रभु इस पर कहेंगे, ‘वर मांगो‘ पहाड़ तब शायद थोड़ा हिलेगा। बाल्टी एक गहरे कुएं में बैठा मेंढक, टर्रा रहा है जानता है वह केवल कुएं को ही कुआं ही उसका सारा संसार वह नहीं जानता ऊपर से आ रही बाल्टी निकाल देगी उसे कुएंंंं से करवाएगी दर्शन अन्नंत का। दो गहरे कुएं में बैठा मेंढक, टर्रा रहा है, जानता है वह, कि है संसार, इस कुएं से बाहर सुन रखा है उसने बुजुगोर्ं से वह पूरी