बेबनी साहब

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यह कहानी बेबनी साहब के संघर्ष की है। वह एक आम आदमी है जो समाज के खोखले दिखावे और महत्वाकांशाओं से जूझते है। एक समय ऐसा था जब लोग अपने उसूल और अपने मान-मर्यादा को अपने जीवन में पहला स्थान देते थे पर अब तो उन्हीं उसूल और मान-मर्यादा की धज्जियां उड़ाई जा रही है। लेकिन अंत में वह समाज में आये बदलाव को स्वीकार भी कर लेते है। नहीं है उनमें इतनी हिम्मत नहीं है कि उसी समाज के हर वर्ग के लोगों से जाकर लड़ पड़े और कह दे की वह अपने मूल सिद्धान्तों को बदल नहीं सकते। वह झुक जाते है। वह अच्छी तरह जानते है यदि वह भी दुनिया के खोखले सिद्धांतो के आगे सर नहीं झुकाएंगे तो या तो वह कुचल दिए जायेँगे या फिर समाज से बेदखल कर दिए जायेँगे। हाँ, वो झुकते ज़रूर है पर एक लंबे संघर्ष के बाद।