Ekta ke Akshar

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औरत की व्यथा क्यूं बेबस बनाया जाता है एक लङकी को जन्म लेने से मरने तक बचपन में पिता का साया फिर भाईयों ने दबाया जवान होते होते कर देते है उसे पराया पति को संरक्षक बनाकर ये आभास कराते है अभी भी तुम स्वतंत्र नही ये विश्वास दिलाते है न हो तुम आत्मनिर्भर मन में सदा रखो ये डर पंख नही फैला सकती हो जाना चाहोगी जिधर न चाहते हुए भी उसे हरदम भय दिखाया जाता है इक अनजाना..अनचाहा सा तय कर दिखाया जाता है